AIMIM Biryani Hungama: बिहार चुनाव में किशनगंज में नामांकन के बाद ‘बिरयानी पर हंगामा’ | ज़मीन की हकीकत :
बिहार चुनावी ,में जब 'बिरयानी' बनी राजनीति की हेडलाइंस :
बिहार में चुनावी माहौल गर्म है। हर पार्टी अपने शक्ति प्रदर्शन में लगी हुई है, लेकिन इस बार चर्चा किसी भाषण या घोषणा की नहीं, बल्कि एक ‘बिरयानी की प्लेट’ की हो रही है।
यह कहानी है — AIMIM Biryani Hungama की, जिसने बिहार की राजनीति को नए सिरे से चर्चा में ला दिया है।
किशनगंज ज़िले के बहादुरगंज विधानसभा से AIMIM उम्मीदवार तौसीफ आलम के नामांकन के बाद जो नज़ारा सामने आया, उसने सबको चौंका दिया। जहाँ हजारों समर्थक उम्मीदवार के समर्थन में जुटे थे, वहीं पूरा माहौल तब बदल गया जब बिरयानी बांटने की बारी आई।
वीडियो में दिखी धक्का-मुक्की और अफरा-तफरी ने एक सवाल खड़ा कर दिया — क्या चुनावी भीड़ विचारधारा के लिए होती है या भोजन के लिए?
AIMIM उम्मीदवार तौसीफ आलम के नामांकन के बाद क्या हुआ?
AIMIM (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) अब बिहार की राजनीति में एक मजबूत दावेदार के रूप में उभर रही है।
तौसीफ आलम जब बहादुरगंज सीट से नामांकन करने पहुंचे, तो उनके साथ बड़ी संख्या में समर्थक भी पहुँचे।
नामांकन के बाद पार्टी ने समर्थकों के लिए खाने-पीने की व्यवस्था की थी — और मुख्य आकर्षण थी बिरयानी।
लेकिन जैसे ही बिरयानी बांटी जाने लगी, भीड़ अनियंत्रित हो गई।
वायरल वीडियो में साफ़ देखा जा सकता है कि लोग एक-दूसरे पर टूट पड़े, प्लेटें छीनने की कोशिशें होने लगीं, और धक्का-मुक्की के बीच कई लोग ज़मीन पर गिर पड़े।
सिक्योरिटी और आयोजक तमाशबीन बन गए।
एक शख्स की आवाज़ वीडियो में गूंजती है —
“भाई, बिरयानी के लिए लड़ाई हो रही है यहां पर…”
यह एक लाइन AIMIM Biryani Hungama की पूरी कहानी बयान कर देती है।
राजनीतिक संकेत: क्या सिर्फ़ भोजन के लिए जुटी थी भीड़?
हर नामांकन कार्यक्रम राजनीतिक ताकत दिखाने का मौका होता है, लेकिन किशनगंज की यह घटना एक कठोर सच्चाई बयान करती है।
विपक्षी दलों ने इसे निशाना बनाते हुए कहा कि —
“AIMIM समर्थक विचारधारा से नहीं, बल्कि भोजन से आकर्षित हैं।”
यह सवाल सिर्फ AIMIM तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे देश की चुनावी राजनीति पर चोट करता है।
“फ्रीबी कल्चर” (Freebies) और चुनावी रैलियों में भोजन वितरण अब एक आम परंपरा बन चुकी है।
पर क्या यह लोकतंत्र की मजबूती है या जनता की मजबूरी?
आवाज़-ए-भारत का मानना है कि राजनीतिक दलों को अपनी सभाओं में व्यवस्था और अनुशासन पर गंभीर ध्यान देना चाहिए।
इस तरह की घटनाएँ भविष्य में बड़े हादसों को जन्म दे सकती हैं।
सामाजिक सवाल: जब बिरयानी बनती है राजनीति
इस घटना का सामाजिक पहलू और भी चिंताजनक है।
वीडियो में दिखा कि कैसे एक प्लेट बिरयानी पाने के लिए लोग एक-दूसरे पर टूट पड़े।
यह सिर्फ अफरा-तफरी नहीं थी — यह आर्थिक असमानता और भूख की सच्चाई का आईना थी।
बिहार आज भी बेरोज़गारी और गरीबी की मार झेल रहा है।
जब लोग चुनावी भाषणों की बजाय बिरयानी की कतार में ज़्यादा रुचि दिखाएँ, तो यह नेताओं और नीति-निर्माताओं के लिए सोचने का समय है।
यह वीडियो यह भी दिखाता है कि जनता के बुनियादी सवाल अब पेट से जुड़ गए हैं, न कि विकास की बहसों से।
नतीजा: बिरयानी ने भाषणों पर भारी पड़ी
तौसीफ आलम का नामांकन सफल रहा, लेकिन जो चर्चा सबसे ज़्यादा हुई — वह थी ‘बिरयानी पर हंगामा’।
किशनगंज का यह वायरल वीडियो अब पूरे बिहार में चर्चा का विषय बन गया है।
यह घटना बिहार की राजनीति की जमीनी हकीकत को उजागर करती है।
बड़े मंचों से दिए गए भाषणों से ज़्यादा अब जनता व्यवहारिक मुद्दों पर प्रतिक्रिया दे रही है — चाहे वह एक प्लेट बिरयानी ही क्यों न हो।
आवाज़-ए-भारत की टीम इस घटना की निगरानी कर रही है और देख रही है कि क्या यह विवाद बिहार चुनाव 2025 की दिशा पर असर डालेगा या नहीं।
समय ही बताएगा कि बिरयानी की राजनीति, वोटों के स्वाद को कितना बदल पाएगी।
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